दिल है अभी उदास, लबों पर हैं हिचकियाँ
किसको पुकारती हैं न जाने ये सिसकियाँ
ये किस तरह के लोग, ज़माने में आ बसे
कहदूँ मैं दिल की बात, तो उठती हैं उंगलियां
अव्वल किसी को बैर नहीं मस्जिदों से कुछ
फिर कौन से इशारे पे जलती हैं बस्तियाँ
ऐ दिल जरा ठहर न धड़क इस तरह, मुझे
करनी तुझी से हैं अभी दो चार चुगलियां
वो बिजलियाँ गिरा के बहुत खुश जरूर थे
जब तक कि इस तरफ़ रहीं चुपचाप मस्तियाँ
है 'मान' किस कदर तुझे अभिमान आप पे
झूठा तुझे गुमां है कि होंगी न गलतियाँ
©2019 डॉ रविन्द्र सिंह मान
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