सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

तुम होते तो

तुम होते तो सारे मौसम सावन होते
सारी गलियाँ, सारे रस्ते पावन होते

टिम-टिम करती रातों के मद्धम सन्नाटे

तुम मानो या न मानो, मनभावन होते
तितली सी उड़ती-फिरती तुम कुछ-कुछ कहतीं
हम आतुर फूलों का सा अभिवादन होते

तुम होते तो जाहिर है फिर तुम ही होते

चाँद, सितारे, सावन, भादों गुम ही होते

तुम होते तो राहें खुद चल-चल कर आतीं

तुम होते तो मंजिल मुझ को आप बुलातीं
तुम होते तो पग-पग खुशियाँ नाच दिखातीं
तुम होते तो घड़ियाँ पूछ के आती-जातीं

तुम होते तो फूल इजाजत लेकर खिलते

हम से पूछ के मौसम अपने रंग बदलते

तुम होते तो चाँद चाँदनी पर झल्लाता

सूरज हमसे आँख मिलाते भी शर्माता
तुम होते तो जाड़ा तो शरमा ही जाता
पतझड़ तुमको देखके बस घबरा ही जाता

तुम होते तो घिर-घिर फ़ागुन रोज ही आते

मौज-मस्तियाँ भी जीवन के ऐसे होते
तेरे बिन खुशियाँ भी सारी गम जैसी हैं
तुम होते तो गम भी खुशियों जैसे होते

©2019 डॉ रविन्द्र सिंह मान



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