बुधवार, 8 नवंबर 2017

हमने फुटपाथों पे भी घर देखे हैं


पत्थर बिस्तर, तकिए पत्थर देखे हैं
हमने फुटपाथों पे भी घर देखे हैं

दिन में ये आँखें जो रेत सरीखी हैं
इन ने पूरी रात समन्दर देखे हैं

तूफानों का डर उन पेड़ों को कैसा
जिन ने बारिश में भी पतझर देखे हैं

दिल नहीं देकर जीने में बचता भी क्या
फूँक तमाशे हमने भी घर देखे हैं

कैसे काश्तकार यहाँ मजदूर बने
इस धरती ने सारे मंज़र  देखे हैं



©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान
 सर्वाधिकार सुरक्षित

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