कोलाहल थम जाये तो कुछ साँस आये
सन्नाटे ये कहकर, थोड़ा पास आये
बाहर शोर बहुत है
भीतर सन्नाटा है
बाहर का कोई अर्थ नहीं है
भीतर भी तो समर्थ नहीं है
जीवन की राहों के सूनेपन में अब
अँधेरा छा जाये तो कुछ साँस आये
सन्नाटे ये कहकर थोड़ा पास आये
ये कोलाहल थम जाये तो कुछ साँस आये
ठीक पहाड़ के बीच
पहाड़ बना जीवन
पत्थर, मिट्टी, ढ़ेले
कितने शाँत, अकेले!
जीवन के रस्तों की फिसलन पे आखिर
पैर फिसल जाये तो थोड़ा साँस आये
सन्नाटे ये कहकर थोड़ा पास आये
कोलाहल थम जाये तो कुछ साँस आये
साँसों का चलना
भी कोई चलना है
सूरज का ढलना
भी कोई ढलना है
पथ ही पथ की बाधा है
जीवन, मौत का वादा है
धड़कन राहत पाये तो कुछ साँस आये
कोलाहल थम जाये तो कुछ साँस आये
सन्नाटे ये कहकर थोड़ा पास आये
कोलाहल थम जाये तो कुछ साँस आये
©2017 डॉ रविन्द्र सिंह मान
सर्वाधिकार सुरक्षित
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें