बात जब भी कही सदाकत की
उठ गईं उँगलियाँ अदावत की
आँधियाँ जब चलीं शिकायत की
अर्जियां उड़ गईं हिमायत की
माँगने हक चले हैं हम उनसे
बात करते हैं जो कयामत की
जिन्दगी भर सहे सितम हमने
आप कहते रहे इनायत की
मुद्दतों बाद पूछते हैं वो
हालतें हमसे फिर सलामत की
हम चले तो हवायें भी हमसे
कर रहीं चुगलियाँ मुहब्बत की
मंदिरों-मस्जिदों के साये ही
कत्लगाहें बनीं इबादत की
आज भी भूख की हुकूमत पर
हुक्मरानों ने कब नदामत की
कोई फ़रियाद फिर करे कब तक
नींद गहरी हो जब हुकूमत की
कोंपलें फूट आईं फिर देखो
ये हुई बात कुछ बगावत की
©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान
सर्वाधिकार सुरक्षित
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