शनिवार, 24 सितंबर 2016

राहों में इस उस से धोखा खा बैठे

राहों में इस उस से धोखा खा बैठे
चलते-चलते पत्थर से टकरा बैठे

उनको सिज्दा करके, ऐसा लगता है

दिल का पारा, शीशे में उलझा बैठे

उसने जब भी चाहा रुसवा कर डाला

सीने का गम ये किसको बतला बैठे

वो मौसम से पहले बदला, जिस खातिर

हम जीने-मरने की कसम उठा बैठे

जीवन के दरिया में बहते-बहते सब

साहिल से मिलने की शर्त लगा बैठे



©2016 डॉ रविन्द्र सिंह मान
 सर्वाधिकार सुरक्षित

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