सोमवार, 18 जून 2018

कुछ ऐसे याद आते हो तुम



जब भी शामों को थका- थका सिर पर से सूरज ढलता है
और सँध्या की दस्तक देता जब पच्छम रंग बदलता है
जब- जब बादल के पीछे से पूनम का चाँद निकलता है
तुम फिर से याद आ जाते हो 

धरती की तपन जब रातों की ठंडक में सिहरने लगती है
चँदा से चकोरी मिलने को हर तौर बदलने लगती है
जब रात भी आखिर में रह- रह राहों सी मचलने लगती है
तुम फिर से याद आ जाते हो 

जब शहरों में रहते- रहते, वनवास की बातें होती हैं
तन- मन से भरे खाये- पिये, उपवास की बातें होती हैं
जब हाल से कोई खुश न हो इतिहास की बातें होती हैं
तुम फिर से याद आ जाते हो 

जब रोज दिनों की तह में से, इक दिन तेरे रंग सा चढ़ता है
जब रोज हवा के झुरमट में कोई तेरी खुश्बू भरता है
जब रोज दिशाओं से कोई तेरी ओर इशारा करता है
तुम फिर से याद आ जाते हो 

धरती के दूर किनारे पर, मैं तन्हाईयों से लड़ता हूँ
खुद अपने- आप से डरा- डरा, उन रुसवाईयों से लड़ता हूँ
हर रोज जुदा होकर खुद से, इन परछाईयों से लड़ता हूँ
और याद तुम्हें ही करता हूँ

सुन, आज भी दिल की गलियों में तेरे ही तराने बजते हैं
सुन, आज भी रात की पलकों पर बस खाब तेरे ही सजते हैं
सुन, आज भी, झुककर दीवाने, तेरे नाम पे सज्दे करते हैं
जब-जब भी याद आ जाते हो


©2018 डॉ रविन्द्र सिंह मान
 सर्वाधिकार सुरक्षित

शुक्रवार, 8 जून 2018

कोई गीत मुहब्बत वाला




कोई गीत मुहब्बत वाला गा सकते तो अच्छा था
जाते- जाते तुम थोड़ा मुस्का सकते तो अच्छा था

जाने कितनी उम्मीदों से तकते हैं दीवाने दिल
तुम भी इन नजरों से नजर मिला सकते तो अच्छा था

चोरी- चोरी रातों मुझसे पूछे उसके बारे में
अपने दिल से कोई बात छुपा सकते तो अच्छा था

जैसे मयख़ाने में भूले जाते हैं शिकवे सारे
हम भी बहके दिल को यूँ बहला सकते तो अच्छा था

वैसे हमको गया निकाला, जैसे जन्नत से आदम
तेरे दर हम लौट अगर फिर आ सकते तो अच्छा था

किसी बात पे बरबस रोते- रोते हँस देते हो ज्यूँ
हम भी दिल को कुछ ऐसा बतला सकते तो अच्छा था

जाने कैसे तुम जख्मों को  हिना बताए बैठे हो
हम भी कोई, दिन को रात बता सकते तो अच्छा था

चाँदी जैसे इस मौसम में निकली सोने जैसी धूप
ऐसे में गर तेरी याद बुझा सकते तो अच्छा था

तेरी यादें फिर- फिर हवा के ताजे झौंकों जैसी हैं
गो इनसे हम दिल के जख्म बचा सकते तो अच्छा था

अक्सर ही पूछा करता हूँ खुदसे, अपना साथी कौन
जुज अपने, तुमको अपना बतला सकते तो अच्छा था

©2018 डॉ रविन्द्र सिंह मान
 सर्वाधिकार सुरक्षित